
देहरादून, उत्तराखंड: दून घाटी में सोमवार और मंगलवार की दरमियानी रात प्रकृति का रौद्र रूप देखने को मिला। मूसलाधार बारिश और बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई है, जिससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। विभिन्न स्थानों पर नदी में बहने और मलबे में दबने से 17 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 13 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं। प्रशासन ने 13 मौतों, तीन घायलों और 13 लोगों के लापता होने की पुष्टि की है।
सौंग और तमसा नदियों ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया कि अपने किनारों पर बसे घरों को भी नहीं बख्शा। इन नदियों के दूसरे छोर से अपने घरों को निहार रहे लोगों की जुबान पर बस एक ही बात थी – “हे विधाता कन रुठि तू, त्वै तें दया भि नि आई…” (हे विधाता, तू क्यों रूठ गया है, तुझे दया भी नहीं आई)। हर कोई यही कह रहा था कि जान तो बच गई, लेकिन जीवन भर की खून-पसीने की कमाई उनके मकान अब खतरे की जद में हैं।
इस आपदा में कई पुल, सड़कें और अन्य बुनियादी ढांचा क्षतिग्रस्त हो गया है। सहस्त्रधारा, मालदेवता और रायपुर जैसे क्षेत्रों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। राहत और बचाव कार्य लगातार जारी है, जिसमें एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगी हुई हैं। प्रशासन ने प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है और हर संभव मदद का भरोसा दिलाया है।
इस आपदा ने एक बार फिर उत्तराखंड की नाजुक पारिस्थितिकी के प्रति इंसानी लापरवाही पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों में अनियंत्रित निर्माण कार्य ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं।