
उत्तराखंड के गौचर क्षेत्र में आस्था और परंपरा का संगम देखने को मिला, जहाँ मा कालिंका देवी तीन दिन बाद अपने मायके से विदा होकर ससुराल के लिए रवाना हुईं। देवी की विदाई का यह भावुक क्षण रविवार को हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों, खासकर धियाणियों (बेटियों) ने, नम आँखों से उन्हें विदाई दी।
मायके प्रवास और भावुक विदाई
गौचर क्षेत्र के सात गाँवों की अधिष्ठात्री देवी, मां कालिंका, अपने भाई रावलों के साथ मायके पनाई सेरे में तीन दिवसीय प्रवास पर थीं। इस दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी, जिन्होंने पूजा-अर्चना कर मन्नतें माँगी। पंडितों ने विधि-विधान से देवी पाठ और हवन-यज्ञ कर देवी माँ को प्रसन्न किया। धियाणियों ने माता को नए अनाज और श्रृंगार सामग्री भेंट कर उनका आशीर्वाद लिया। शनिवार की रात महिला मंगल दलों और भक्तों ने भजन-कीर्तन कर पूरी रात जागरण किया।
ससुराल की ओर प्रस्थान
रविवार को मा कालिंका अपने दोनों भाईयों, रावलों के साथ, अपनी ससुराल भट्टनगर के लिए विदा हुईं। इस दौरान भक्तों ने जयकारे और मांगल गीत गाकर देवी को विदा किया। विदाई के समय, धियाणियों ने अपनी आराध्य देवी के लिए श्रृंगार सामग्री और अन्य भेंटें अर्पित कीं।
प्रमुख लोगों की उपस्थिति
इस अवसर पर स्थानीय पालिका अध्यक्ष संदीप नेगी सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे, जिनमें अनिल नेगी, उमराव सिंह नेगी, राधावल्लभ थपलियाल, और जगदीश सिंह कनवासी प्रमुख थे। इनके अलावा, बड़ी संख्या में महिलाएँ और पुरुष भक्त भी मौजूद थे। जिन्होंने इस धार्मिक और पारंपरिक आयोजन में हिस्सा लिया।