वेदनी बुग्याल का सूखा कुंड और क्षतिग्रस्त घास के मैदान: पर्यटन स्थल की दुर्दशा
चमोली: उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल वेदनी बुग्याल की खूबसूरती पर गहरा संकट मंडरा रहा है। देश-विदेश से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने वाला यह बुग्याल अब सूखे कुंड और क्षतिग्रस्त घास के मैदानों के कारण अपनी पहचान खोता जा रहा है।
वेदनी बुग्याल, ऑली बुग्याल, रूपकुंड, भीकलताल और ब्रह्मताल जैसे बुग्याल हर साल हजारों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। वन विभाग को इन बुग्यालों से लाखों रुपये की आय होती है। लेकिन विभाग की लापरवाही के कारण इनकी स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।
वेदनी कुंड का सूखना
वेदनी बुग्याल का मुख्य आकर्षण रहा वेदनी कुंड अब पूरी तरह सूख चुका है। कुंड में गाद जम जाने और लीकेज होने के कारण इसमें पानी बिल्कुल नहीं बचा है। स्थानीय निवासी और पूर्व रेंजर त्रिलोक सिंह बिष्ट ने बताया कि कुंड के आसपास और पूरे बुग्याल में जंगली सुअरों ने घास को खोद डाला है, जिससे बुग्याल का प्राकृतिक सौंदर्य क्षतिग्रस्त हो गया है।
धार्मिक महत्व
वेदनी कुंड का न केवल पर्यटन, बल्कि धार्मिक महत्व भी है। हर साल अगस्त-सितंबर में आयोजित श्रीनंदा लोकजात यात्रा में मां नंदा की डोली कुंड के चारों ओर परिक्रमा करती है। यात्रा के दौरान श्रद्धालु कुंड में स्नान करते हैं।
वन विभाग की भूमिका
पूर्वी पिंडर रेंज देवाल के रेंज अधिकारी मनोज देवराड़ी ने इस समस्या को स्वीकार करते हुए कहा कि वे जल्द ही वेदनी कुंड के संरक्षण और बुग्याल को पुनर्स्थापित करने के लिए एक कार्य योजना बनाएंगे।
पर्यटन पर असर
वेदनी बुग्याल की इस दुर्दशा का सीधा असर पर्यटन पर पड़ रहा है। कोरोना महामारी के बाद पर्यटकों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी, लेकिन अब बुग्याल की स्थिति बिगड़ने से पर्यटक कम आ रहे हैं।
कारण और समाधान
- लापरवाही: वन विभाग की लापरवाही इस समस्या का मुख्य कारण है।
- जंगली जानवर: जंगली सुअरों ने बुग्याल को क्षतिग्रस्त किया है।
- पर्यटकों का दबाव: बढ़ते पर्यटकों के दबाव से भी बुग्याल पर असर पड़ रहा है।
समाधान:
- कुंड की सफाई और मरम्मत
- जंगली जानवरों से सुरक्षा
- पर्यटकों के लिए नियम
- स्थानीय लोगों की भागीदारी
निष्कर्ष
वेदनी बुग्याल की दुर्दशा एक गंभीर मुद्दा है। इसे सुधारने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करना होगा। वन विभाग को इस मामले पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और बुग्याल के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।
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